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तापस सेन

तापस सेन (१९२४-२००६)

मूल निवास-स्थान-असम का धुबरी। पिता मतिलाल सेन, माता सुवर्णलता सेन सरस्वती। बचपन, किशोरावस्था और युवावस्था के शुरुआती कुछ साल दिल्ली में ही गुज़रे। रायसीना बंगाली स्कूल से प्रवेशिका परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद पॉलीटेक्नीक इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। मगर रोशनी के प्रति आकर्षण के चलते पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी। यहाँ तक कि मध्यवर्गीय बंगाली परिवारों के लिए चरम काम्य स्थायी नौकरी की माया छोड़ कर मुम्बई चले गये ताकि फ़िल्म जगत में प्रकाश का कला-कौशल सीख सकें। उसके पहले दिल्ली में स्कूली जीवन से ही मंचों पर प्रकाश-प्रक्षेपण की वजह से स्वतन्त्र और विशिष्ट पहचान मिलनी शुरू हो गयी थी। मात्र पन्द्रह साल की उम्र में 'राजपथ' (१९३९) नाटक में प्रकाश-व्यवस्था की ज़िम्मेदारी सँभाली थी। उसके बाद से पचास से अधिक साल गुजर गये। मुम्बई के फ़िल्म जगत्‌ में प्रवेश की व्यर्थ चेष्टा के बाद कोलकाता आ गये। गणनाट्य संघ के 'नवान्न' की प्रस्तुति उस वक़्त की सुखद स्मृति बनी। नाना राजनीतिक विपर्ययों के बीच बाङ्ला थिएटर एक नयी सम्भावना से आलोकित हो उठा था। और इस प्रकाश-प्रक्षेपण में श्रेष्ठ शिल्पी के तौर पर तापस सेन का ही आत्मप्रकाश घटित हुआ था। कोलकाता में पहली बार काम करने का मौक़ा, १९४९ में, ऋत्विक घटक द्वारा निर्देशित नाटक 'ज्वाला' में मिला था। पचास के दशक में कुछ समय तक गणनाट्य संघ के सदस्य रहे। एलटीजी के अध्यक्ष रहे। पश्चिमबंग नाट्य अकादेमी के सक्रिय सदस्य रहे। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित, जिनमें संगीत नाटक अकादेमी अवार्ड अन्यतम है।

अन्तरंग आलोक

तापस सेन

मूल्य: Rs. 425

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